माँ बगलामुखी

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का ग्रंथ जब एक राक्षस ने चुरा लिया और पाताल में छिप गया तब उसके वध के लिए मां बगलामुखी की उत्पत्ति हुई। पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान मां का मंदिर बनाया और पूजा अर्चना की। पहले रावण और उसके बाद लंका पर जीत के लिए श्रीराम ने शत्रुनाशिनी मां बगला की पूजा की और वियज पाई। मां को पीतांबरी भी कहा जाता है।

माँ बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं. माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए.

देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं. संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर  प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है. बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है.

माँ बगलामुखी

देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं. देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं. देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है.

स्वतंत्र तंत्र के अनुसार भगवती बगलामुखी के प्रदुभार्व की कथा इस प्रकार है-सतयुग में सम्पूर्ण जगत को नष्ट करने वाला भयंकर तूफान आया। प्राणियो के जीवन पर संकट को देख कर भगवन विष्णु चिंतित हो गये। वे सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर भगवती को प्रसन्न करने के लिये तप करने लगे। श्रीविद्या ने उस सरोवर से बगलामुखी रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिया तथा विध्वंसकारी तूफान का तुरंत स्तम्भन कर दिया। बगलामुखी महाविद्या भगवन विष्णु के तेज से युक्त होने के कारण वैष्णवी है। मंगलयुक्त चतुर्दशी की अर्धरात्रि में इसका प्रादुर्भाव हुआ था। श्री बगलामुखी को ब्रह्मास्त्र के नाम से भी जाना जाता है

Maa Baglamukhi story in english

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