लोहड़ी के पर्व से जुड़ी एक प्राचीन मान्यता के अनुसार मुगल काल में राजा अकबर के शासन काल के दौरान उस समय पंजाब में एक दुल्ला भट्टी नामक एक व्यक्ति रहता था जिसे कुछ लोगों द्वारा डाकू भी कहा जाता था। उस समय पंजाब में व्यापार के मुनाफे के लिए न सिर्फ वस्तु का क्रय-विक्रय किया जाता था। बल्कि कुंवारी लड़कियों को भी अपने स्वार्थ के लिए कुछ व्यापारी मोटे दाम पर बेच देते थे। पर दुल्ला भट्टी इस कालाबाजारी से सख्त नफरत करते थे।
ऐसी स्थिति में दुल्ला भट्टी ने उन लोगों की मदद की जिसमें गरीब और असहाय भी शामिल थे। जिनके घर की बेटियों को मुगलों या अमीरों को बेच दिया गया था। ऐसे ही संकट में दुल्ला भट्टी ने अकेले कई लड़कियों को गुलामी से आजाद कराकर उनका विवाह कराया था और उस समय चूंकि दहेज प्रथा भी चरम पर थी तो दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों की शादी करवाने के लिए दहेज का इंतेजाम किया।
इस तरह दुल्ला भट्टी जनता के लिए एक फरिश्ता बनकर आए और आगे चलकर जनता ने फैसला किया कि हर साल दुल्ला पट्टी की याद में लोहड़ी का पर्व मनाया जाएगा। तभी से अब तक अनेक पीढ़ियों के बीच लोहड़ी के पर्व के मौके पर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनने का प्रचलन शुरू हुआ और इस पर्व के मौके पर यह लोकप्रिय गीत गाया जाता है। अगर आपने अब तक दुल्ला भट्टी का नाम नहीं सुना था तो अब आप जान चुके होंगे क्यों पंजाबियों द्वारा लोहड़ी के मौके पर दुल्ला भट्टी गीत गाया जाता है।
मान्यता है संत कबीर दास की पत्नी लोई की याद में लोहड़ी का पर्व सिख समुदाय द्वारा मनाया जाता है। संत कबीर 15वीं शताब्दी के महान कवि और संत के रूप में जाने जाते हैं।
बैसाखी पर्व के समान ही पंजाबियों के लिए लोहड़ी का पर्व फसल, ऋतुओं से जुड़ा हुआ है। जनवरी के इस मौसम में खेतों में सरसों के फूल खिल खिलाते दिखाई देते है। और रवि की फसल काटकर घर में लाई जाती है, तथा लोहड़ी के पर्व के बाद से खेतों में मक्का और मूली उगाई जाती है।
लोहड़ी पर्व से जुड़ी एक पौराणिक मान्यता यह है कि जब सती के पिता प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया। तो इस दुख में उन्होंने यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी इसलिए सती की याद में लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। किसानों द्वारा लोहड़ी का पर्व एक नए वित्तीय वर्ष (Financial Year) के तौर पर मनाया जाता है। माना जाता है लोहड़ी की आग (अलाव) जलाने के बाद रात्रि के समय घर को प्रस्थान करते समय दो चार कोयले अपने साथ घर लाना एक प्राचीन मान्यता है जिसका आज भी पालन किया जाता है।
इसके अलावा बता दें नए साल की शुरुआत में भारत के साथ साथ इसी तरह का त्यौहार ईरान में भी देखने को मिलता है। वहां ईरानी पारसियों द्वारा अपने प्राचीन त्यौहार चरान शंबे सूरी मनाया जाता है। जिसमें लोहड़ी की तरह आग जलाकर घेरा बनाकर उसमें मेवे अर्पित किए जाते हैं।