Lohri Mata ki Katha

नरवर किला एक ऐतिहासिक किला माना गया है जिसके ऊपर बहुत ही प्राचीन कथाएं हैं जिनमें से एक  लोहड़ी माता की कथा है। तो आज हम केवल लोहड़ी माता की कथा के बारे में जानेंगे।

नरवर किला और लोहड़ी माता का इतिहास ग्वालियर से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिला शिवपुरी के नरवर शहर से संबंधित है। नरवर का इतिहास करीब 200 वर्ष पुराना है। 19वीं सदी में नरवर राजा ‘नल’ की राजधानी हुआ करती थी। नल नामक एक राजा हुआ करते थे। नरवर जोकि बीसवीं शताब्दी में नल पुर निसदपुर नाम से भी जाना जाता था।

नल राजा जोकि नरवर का जो राजा हुआ करता था उसे जुआ सट्टा खेलने का बहुत ही गंदी लत थी जिसके कारण नरवर राज्य अपने जिले में सारी की सारी संपत्ति हार गया था बाद में राजा नल के पुत्र मारू ने नरवर को जीता और वहां राजकीय नरम मारू एक बहुत ही अच्छा राजा माना गया था। मारू ढोला प्रेम कहानी जो कि पूरे राजस्थान में सबसे ज्यादा लोकप्रिय मानी जाती है।

नरवर की स्थानीय कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि लोहड़ी माता समुदाय से ताल्लुक रखती थी। बताया जाता है कि लोड़ी माता को तांत्रिक विद्या में महारत हासिल थी। वह धागे के ऊपर चलने का असंभव सा काम भी किया करती थी।

जब लोहड़ी माता ने अपने कारनामा राजा नल के भरे दरबार में दिखाया तो राजा नल के मंत्री ने लोहड़ी माता से जलन के कारण वह धागा काट दिया जिसके कारण लोहड़ी माता की अकाल मृत्यु हो गयी। तभी से लोढ़ी माता के श्राप से नरवर का किला खंडहर में बदल गया। वर्तमान समय में लोड़ी माता का मंदिर, लोहड़ी माता के भक्तों ने बनवाया है। यहां पूजा करने के साल भर लाखों श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है।

लोहड़ी माता की मान्यता बहुत दूर-दूर तक है और प्रत्येक वर्ष हजारों लाखों की तादाद में लोग लोहड़ी माता के दर्शन करने जाते हैं। आपको यह कहानी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएं। आशा करता हूं आपको यह कहानी अच्छी लगी होगी और यह सत्य कहानी है, कहा जाता है लोहड़ी माता के यहां जाकर सारी की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है।

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